फिर से देश पूर्ण लॉकडाउन की ओर! 

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कोरोना पर भारी आस्था; चुनावी-धार्मिक

 

-विजय श्रीवास्तव-

जयपुर। अगर आस्था हमारे जीवन पर भारी पड़ जाए तो फिर ये ही सही समय है अपने बारे में सोचने का, अब चाहे वो चुनावी हो या फिर धार्मिक। देशभर में एक बार फिर से कोरोना की लहर ने रफ्तार पकड़ ली है जिसके चलते शायद ही कोई राज्य ऐसा बचा हो जहां कोरोना के मरीजों की संख्या में दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ोतरी नहीं हो रही हो। तो अगर ये कहें कि कोरोना एक ऐसा वायरस है जिसने शायद ही कोई घर छोड़ा हो, इसने किसी भी वर्ग, जाति, समुदाय को नहीं छोड़ा तो गलत नहीं होगा। क्योंकि कोरोना का दंश देशभर में आज हर कोई झेल चुका है और जो अब तक बचे हुए थे वो दूसरी लहर की चपेट में आ चुके हैं, चाहे उनमें आम जनता हो, वीवीआईपी हों, राजनेता हो, बड़े बिजनेसमैन हों या फिर सिने कलाकार हों। हालांकि हर प्रदेश अपने स्तर पर कोरोना को रोकने के लिए प्रयास भी कर रहा है लेकिन इसके बाद भी हर दिन कोरोना के केसेज में दोगुनी रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है। विषय विशेषज्ञों और डॉक्टरों की मानें तो केंद्र और राज्य सरकारों को भी इस बात का इल्म था कि कोरोना का दूसरा फेज भी आएगा बावजूद इसके इसे रोकने के लिए सरकारों ने पहले से कोई साधन नहीं अपनाए।

वहीं हमारे देश में धर्म, समाज और राजनीति इतनी हावी रहती है कि इनके नाम पर आप देश में कोई भी काम गलत हो या सही कुछ भी कभी भी कर सकते हैं। क्योंकि इनसे ऊपर उठकर कोई नहीं सोचता। उदाहरण के तौर पर देशभर में हो रहे चुनावों की बात करें तो ये बात साफ हो जाती है कि जहां चुनाव हैं जैसे उन राज्यों या शहरों में तो कोरोना को लेकर किसी की कोई चिंता ही नहीं है। सिर्फ फौरी तौर पर गाइडलाइन जारी कर दी जाती है फिर खुद नेता ही चुनाव प्रचार के लिए इन गाइडलाइनों का उल्लंघन करते नजर आते हैं। ऐसा कई बार हो चुका है जब चुनावों वाले शहरों या राज्यों से कोरोना वायरस के भी डरने की चुटकियां लोग ले रहे हैं। समझदारों को बताने की जरूरत नहीं है कि राजनेता अपनी अपनी रोटी सेकने के लिए सिर्फ दिखावे के लिए ही कोरोना का जिक्र जरूर अपने भाषण में कर देते हैं, नहीं तो हकीकत में देखा जाए तो उनका कोरोना से कोई लेना देना नहीं है। वो तो सिर्फ अपनी पार्टी के प्रचार की बात करते ही नजर आते हैं अब चाहे वो किसी राज्य के मुख्यमंत्री हों, सांसद हों, विधायक हो या हमारे देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्री हों। क्या इन्हें रैलियों में सभाओं में आने वाले लोगों की चिंता नहीं है? और है तो फिर क्यों नहीं ये लोग वर्चुअल रैलियों और सभाओं को बढ़ावा दे रहे हैं? क्यों हर सभा में इनके भाषण सुनने के लिए इन्हें जनता का हुजुम चाहिए? हाल में देशभर में पांच राज्यों में चुनावी लहर चली और उसके परिणाम भी आपके सामने धीरे-धीरे आने लगे हैं और कुछ परिणाम जल्द ही डरावनी स्थिति लेकर सामने होंगे। तो क्या नेताओं को कोरोना से डर नहीं है या कोरोना वाकई नहीं है ये सिर्फ एक माहौल बनाया जा रहा है अपने राजनीतिक उल्लू सीधा करने और पूंजीपतियों की तिजोरियां भरने के लिए।

अगर वाकई कोरोना है तो फिर उत्तराखंड में महाकुंभ पर क्यों नहीं सख्ती हुई? जबकि यहां तो करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है फिर यहां क्यों नहीं सरकारों द्वारा प्रतिबंध लगाया गया? क्यों सिर्फ गाइडलाइन को झुंझुना पकड़ाकर उत्तराखंड और आसपास के राज्यों की जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। आज नहीं तो कल इसका खामियाजा सरकार के साथ-साथ वहां की भोली-भाली जनता को उठाना पड़ेगा, महामारी के इस दौर में आखिर क्या जरूरत थी कुंभ का इतना बड़ा फैलावड़ा करने की? यहां देशभर से लोगों की आवाजाही बदस्तूर जारी है और इसी के चलते इस महामारी का विकराल रूप देखने को मिल रहा है। बाजार में और सोशल मीडिया पर तरह तरह के मीम्स चल रहे हैं जिनमें चुनाव और धार्मिक आयोजनों से कोरोना को डरता हुआ दिखाया जा रहा है। क्यों केंद्र सरकार इतनी असहयोगी हो गई है कि अपनी कुछ फायदे के सामने उन्हें जनता का बड़ा नुकसान भी नजर नहीं आता? हालांकि लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का हमारा कोई मकसद नहीं है लेकिन फिर भी कुंभ के बाद इस महामारी का विकराल रूप लेना तय माना जा रहा है। अब तक हरिद्वार में चल रहे कुंभ में देश के हर कोने से आए करोड़ों लोग स्नान कर चुके हैं। कहते हैं “मन चंगा तो कटोरी में गंगा” तो फिर आस्था के नाम पर ये ढकोसला क्यों? तो क्या यहां कोविड गाइडलाइन की पूरी पालना हुई होगी? और अगर नहीं तो इसके परिणाम क्या होंगे? ये शायद आपको बताने की जरूरत नहीं है इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।
कुंभ में लाखों लोगों के डुबकी लगाने के बाद रुड़की विवि के वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ इससे संक्रमण का फैलाव कई गुना बढ़ने की आशंका से चिंतित हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस सूखे स्थान की तुलना में गंगा के पानी में अधिक समय तक एक्टिव रह सकता है।
गंगा का पानी बहाव के साथ वायरस बांट सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमित व्यक्तियों के गंगा स्नान और लाखों की भीड़ जुटने का असर आगामी दिनों में महामारी के रूप में सामने आ सकता है। इधर उत्तराखंड में कोरोना संक्रमित महामंडलेश्वर कपिल देवदास की मौत के बाद से ही बैरागी अखाड़े की छावनियों में हड़कंप मचा हुआ है।
कोरोना के खौफ का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पिछले 24 घंटों के आंकड़ों को देखा जाए तो देशभर में 2लाख से ज्यादा कोरोना के नए मरीज मिले हैं वहीं 24 घंटों में कोरोना से मरने वालों की संख्या एक हजार से ऊपर पहुंच गई है। महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार, यूपी, उत्तराखंड, केरल, तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब, तेलंगाना, ओड़िसा और असम में कोरोना के मरीजों की संख्या जबरदस्त तरीके से बढ़ रही है।
देश की औद्योगिक राजधानी की बात करें तो अकेले मुम्बई के हालात भी बद से बदतर हो चुके हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली में सरकारों के संभाले हालात नहीं संभल पा रहे हैं। कमोबेश राजस्थान,यूपी, एमपी और बिहार में भी हालात और अधिक गंभीर होते जा रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने जैसे पिछली बार के मुकाबले चार गुना तेजी से लोगों को अपनी चपेट में लिया है और इस बार तो बच्चे और युवा बुजुर्गों के मुकाबले ज्यादा कोरोना की जद में आ रहे हैं। अब तो बस एक ही रास्ता बच जाता है कि ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों या जिलों में पूर्णतया लॉकडाउन लगाया जाए तभी एक बार फिर कोरोना की चैन को तोड़ा जा सकता है लेकिन ये बात भी तय है कि इस बार फिर लॉकडाउन लगा तो आम आदमी सड़क पर आ जाएगा। और इस बार उसकी रिकवरी कैसे होगी? इसका जवाब किसी सरकार, किसी धर्मगुरु, नेता या पूंजीपति के पास नहीं है।

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