श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: जन्मोत्सव का मुहूर्त रात 12 बजे से, जानिए व्रत-विधि, मंत्र और राजस्थान के मंदिरों के आयोजन

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: जन्मोत्सव का मुहूर्त रात 12 बजे से, जानिए व्रत-विधि, मंत्र और राजस्थान के मंदिरों के आयोजन

राजस्थान के मंदिरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम 

जन्माष्टमी व्रत की पूजा, विधि, नियम और महत्व को समझें

पूजा के लिए खास मंत्र को कैसे करें जप

जानिए राजस्थान के पांच बड़े मंदिरों में क्या हैं तैयारियां

विजय श्रीवास्तव,

जयपुर,(dusrikhabar.com)। आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व पूरे देश में उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था। इसी वजह से इस पर्व का मुख्य मुहूर्त आज रात 12 बजे से 12:48 बजे तक रहेगा। इस दौरान भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना कर जन्मोत्सव मनाएंगे।

जन्माष्टमी व्रत की विधि, नियम और महत्व

शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत ब्रह्म मुहूर्त से शुरू कर अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। भक्तजन इस व्रत में अन्न का त्याग कर केवल फल, दूध और सूखे मेवों का सेवन करते हैं। बुजुर्ग, बच्चे और रोगियों के लिए व्रत का नियम लचीला होता है, वे अपनी क्षमता अनुसार इसे निभा सकते हैं।

  • विधि: ब्रह्म मुहूर्त से पूजा प्रारंभ कर रात 12 बजे जन्मोत्सव तक भगवान का ध्यान किया जाता है।

  • नियम: फलाहार व दूध का सेवन, अन्न से परहेज़।

  • महत्व: व्रत करने से मन, शरीर और विचार शुद्ध होते हैं। इसे “जयंती व्रत” कहा गया है जो सुख, समृद्धि और विजय का प्रतीक है।

श्रीकृष्ण पूजा और आसान मंत्र

जो लोग आधी रात में पूजा नहीं कर पाते, वे दिन में भी अष्टमी तिथि के दौरान किसी भी समय पूजा कर सकते हैं। पूजा की शुरुआत श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की प्रतिमा या चित्र को स्नान कराकर वस्त्र और आभूषण पहनाने से होती है। इसके बाद धूप-दीप जलाकर मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
मुख्य मंत्र:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
इस मंत्र का जप करने से मन को शांति मिलती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

राजस्थान के मंदिरों में जन्माष्टमी की भव्य तैयारियाँ

राजस्थान में जन्माष्टमी का पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहाँ के कई प्राचीन मंदिर इस अवसर पर आकर्षण का केंद्र बनते हैं।

गोविंद देव जी मंदिर, जयपुर

जयपुर स्थित प्रसिद्ध गोविंद देव जी मंदिर में ठाकुर जी और राधे रानी का भव्य श्रृंगार किया गया है। पारंपरिक पीतांबर, आभूषण और फूलों से सजे ठाकुर जी के दर्शन से भक्त मंत्रमुग्ध हो रहे हैं। रात्रि 12 बजे जन्मोत्सव के साथ ही 31 तोपों की सलामी से पूरा वातावरण गूंज उठेगा।

राधा दामोदर मंदिर, जयपुर

यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य दोपहर 12 बजे होता है। यह विश्व का इकलौता मंदिर है जहां भगवान का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। यह परंपरा वृंदावन से चली आ रही है।

मदन मोहन जी मंदिर, करौली

करीब 300 साल पुराना यह मंदिर करौली राजपरिवार द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ जन्माष्टमी पर विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना होती है। मंदिर गौड़ीय संप्रदाय की परंपराओं का केंद्र है और जन्माष्टमी पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

द्वारकाधीश मंदिर, कांकरोली

राजसमंद झील के तट पर स्थित इस मंदिर में भगवान कृष्ण की लाल पत्थर की मूर्ति की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी पर यहाँ विशेष आरती, भजन और तोपों से सलामी दी जाती है। भक्तजन दूर-दूर से दर्शन के लिए यहां आते हैं।

श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा

नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय की मुख्य पीठ है। यहाँ जन्माष्टमी पर विशेष उत्सव, आरती और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। मंदिर का इतिहास मुगल काल से जुड़ा है जब श्रीनाथजी की प्रतिमा मथुरा से मेवाड़ लाई गई थी। जन्माष्टमी पर यहाँ की रौनक देखने लायक होती है।

जन्माष्टमी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन घर-घर में झांकियां सजाई जाती हैं, मंदिरों में भजन-कीर्तन और नृत्य-नाटिका का आयोजन होता है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अन्याय और अधर्म के अंत तथा धर्म और न्याय की स्थापना के लिए हुआ था। जन्माष्टमी पर व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और विजय प्राप्त होती है।

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