नहीं रहे संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा
संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा

नहीं रहे संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा

शिव-हरि के नाम से बनाई जोड़ी,  संतूर-बांसुरी की हुई जुगलबंदी

 

विजय श्रीवास्तव,

 

मुम्बई। भारत को लोगों को संतूर वादन से रूबरू कराने वाले मशहूर संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा का आज मुम्बई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। पंडित शिव कुमार 84वर्ष के थे, वे पिछले काफी समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित चल रहे थे। पिछले छह महीने से शिवकुमार डायलिसिस पर जीवित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देशभर के लोगों और संगीत की दुनिया से संबंध रखने वाले उनके शुभचिंतकों ने उनके निधन पर शोक जताया है।

 

खून में ही बसा था संगीत

(पंडित शिव कुमार शर्मा का जीवन परिचय )

13जनवरी 1938  को जम्मू कश्मीर में जन्में पंडित शिव कुमार शर्मा (Who is Pandit Shiv Kumar Sharma) को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला। उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा भी प्रसिद्ध गायक कलाकार थे, यानि उनके खून में ही संगीत रचा-बसा था। शिव कुमार जब पांच साल के थे तो उनके पिता ने उनकी संगीत की शिक्षा शुरू कर दी। सुर साधना और तबला पिता से सीखने के बाद 13साल की उम्र में ही उन्होंने संतूर की भी शिक्षा लेना शुरू कर दिया।

यह भी पढ़ें: गोविंददेवजी महंत अंजन कुमार की पुत्रवधु निवेदिता ने की आत्महत्या

 

जम्मू कश्मीर के लोकवाद्य को पहुंचा दिया विश्वस्तर पर 

संतूर (What is the history of Pandit Shiv kumar Sharma and Santoor playing) जम्मू-कश्मीर का “लोकवाद्य” माना जाता है। लेकिन संतूर को विश्व पटल पर लाने और उसे पहचान दिलाने का श्रेय पंडित शिवकुमार शर्मा को जाता है। केवल चार साल में संतूर की शिक्षा लेकर 17वर्ष में शिव कुकार ने मुम्बई में अपना पहला संतूर वादन का स्टेज शो किया और अपने प्रदेश के वाद्य यंत्र की मधुर आवाज से दुनिया को रूबरू कराया। बस इसके बाद एक के बाद एक शो के जरिए उन्होंने संतूर को इंटरनेशनल लेवल पर लाकर खड़ा कर दिया। कहा जाता है कि कश्मीर में संतूर का अस्तित्व सूफी रवायत से जुड़ा हुआ है, सूफी और फकीरों के संगीत में संतूर शामिल हुआ और इस तरह से सूफी और लोकपरंपरा से जुड़कर संतूर की संगीत में प्रसिद्धि हुई। 

 

पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया फोटो साभाार इंडियन एक्सप्रेस

पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरि प्रसाद चौरसिया फोटो साभाार नई दुनिया

शिव-हरि के नाम से जोड़ी (The pair popularly known as Shiv-Hari) बनाकर बांसुरी और संतूर को दी नई पहचान

शास्त्रीय संगीत में बांसुरी वादक के रूप में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया उनके साथ जुड़े और दोनों ने 1967  में शिव-हरि के नाम से जोड़ी बनाकर शास्त्रीय संगीत को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। शिव-हरि की संतूर और बांसुरी की जुगलबंदी इतनी मशहूर हुई की उन्हें देश-विदेश से शो के लिए ऑफर आने लगे। पंडित शिव कुमार ने 1967 में पहली बार एक क्लासिक एलबम “कॉल ऑफ द वैली” बनाया जो काफी मशहूर हुआ।

यह भी पढ़ें: महान कायस्थ विभूतियों पर हमें गर्व: राज्यपाल कलराज मिश्र

 

पिता की परंपरा को आगे ले जाएंगे राहुल शर्मा

शिवकुमार के चले जाने से संतूर की साधना का एक अमर साधक हालांकि कम हो गया है लेकिन शायद उनके पुत्र और शिव कुमार की पंरपरा के ध्वजवाहक राहुल शर्मा उनके संतूर को अगले पड़ाव तक ले जाने में सफल हो जाएं। राहुल शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे अपने पिता से अधिक प्रयोगधर्मी हैं और वे संतूर को लेकर कई आधुनिक प्रयोगों में जुटे रहते हैं। राहुल अपने फ्यूजन के लिए काफी मशहूर हैं।

CATEGORIES
TAGS
Share This

COMMENTS

Wordpress (0)
Disqus (0 )

अपने सुझाव हम तक पहुंचाएं और पाएं आकर्षक उपहार

खबरों के साथ सीधे जुड़िए आपकी न्यूज वेबसाइट से हमारे मेल पर भेजिए आपकी सूचनाएं और सुझाव: dusrikhabarnews@gmail.com