
अब राहुल-प्रियंका भी कांग्रेसियों के निशाने पर !
आखिर बिना कुर्सी पार्टी के सारे फैसले क्यों ले रहे राहुल गांधी?
प्रियंका भी अब चाहती पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान ?
तो फिर प्रियंका और राहुल को लेकर पार्टी में नाराजगी किसकी ?
विजय श्रीवास्तव
दिल्ली। नेशनल कांग्रेस पार्टी में एक बार फिर से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा वाला जिन्न निकल आया है। अब पार्टी के लोग राहुल को लेकर सक्रिय हो गए हैं। एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिखने वाले 23 लोगों के समूह में भी इन दिनों सक्रियता बढ़ गई है। अब धीरे धीरे राहुल भी कारण जो भी हों पार्टी के फैसले लेने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस में कुछ वरिष्ठ लेटर बम सदस्य नेता दबी जुबान में कहने लगे हैं कि अगर राहुल गांधी को ही सारे फैसले लेने हैं तो फिर राहुल गांधी अध्यक्ष की कुर्सी क्यों नहीं संभाल लेते। दरअसल पिछले दिनों राहुल गांधी ने पंजाब और छत्तीसगढ़ के कई मसलों को सुलझाने के लिए अहम बैठकें की और फैसले भी किए। उसके बाद ही यह प्रतिक्रिया आई कि राहुल अध्यक्ष क्यों नहीं बन जाते?
कांग्रेस के इन नेताओं की प्रतिक्रिया के एक दो दिन के अंदर ही यूथ कांग्रेस की एक बैठक हुई। जानकार सूत्रों की मानें तो इस बैठक में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास किया गया। यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने अनुसार यूथ कांग्रेस की बैठक में राहुल को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आम राय से मंजूर किया गया। तो इसका मतलब ये माना जाए कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है? क्योंकि पूर्व में भी कांग्रेस कार्यसमितियों की बैठकों में कई राज्यों के सीएम और कार्यसमिति सदस्यों ने इसका प्रस्ताव रखा है परन्तु राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए। लेकिन अब जब पार्टी में ही सवाल उठने लगे हैं तो उन्हें फैसला करना होगा। क्योंकि जब सारी बैठकें राहुल के आवास पर हो रही हैं और सभी निर्णय राहुल खुद ले रहे हैं तो फिर वे पार्टी के अध्यक्ष क्यों नहीं बनना चाहते?
इधर अंदरखाने सुगबुगाहट होने लगी है कि राहुल बिना किसी पद या जिम्मेदारी के सारे अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहते हैं, पार्टी के ही G-23 के नेताओं का यह भी कहना है कि वे राहुल के अध्यक्ष बनने के बिल्कुल विरोध में नहीं है। वे केवल ये चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो अध्यक्ष का चुनाव हो जाए ताकि अनिश्चितता खत्म हो। भले ही राहुल को ही अध्यक्ष बना दिया जाए।
इधर राहुल बिना अध्यक्ष बने और कांग्रेस की मौजूदा परिस्थितियों में ज्यादा सहज तरीके से काम कर रहे हैं। कहने को तो सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं और फैसले उनके नाम से हो रहे हैं लेकिन असल में फैसले राहुल अपनी बहन प्रियंका की मदद से ले रहे हैं। पिछले दिनों पंजाब और छत्तीसगढ़ के मामले किसी के छिपे नहीं हैं। सारे नेता राहुल के आवास पर बैठक के लिए आए, घंटों बैठकों के दौर चले, प्रियंका का भी बैठकों के लिए बार बार वहां आना और फिर बैठकों की सूचना सोनिया तक पहुंचाना फिर सोनिया का संदेश वापस बैठक में आकर सुनाना इस पूरी व्यवस्था से कांग्रेस नेता परेशान हो चुके हैं। पार्टी के नेताओं का ऐसा मानना है कि पार्टी में चुनावों के अभाव में सभी राज्यों में पार्टी की स्थिति कमजोर पड़ती जा रही है।
इधर कांग्रेसियों के प्रियंका से भी नाराजगी के मायने खुलकर सामने आ रहे हैं। एक समय था जब कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने को लेकर खासे उत्साहित थे और जब ये प्रयास रंग लाने लगे हैं तो कांग्रेसियों के ही एक खेमे को लगता है कि दूर के ढोल ही सुहावने थे। दरअसल प्रियंका करीब तीन साल से राजनीति में सक्रिय हैं, कहीं न कहीं प्रियंका सोनिया और राहुल गांधी के बीच सेतु बनी हुई हैं। लेकिन अब कांग्रेसियों के नाराज खेमे को लगता है कि प्रियंका से जो उम्मीद थी वो वैसा कुछ नहीं कर पाईं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेसियों को प्रियंका से इंदिरा गांधी के लेवल की राजनीति की उम्मीद थी उन्हें लगता था कि इंदिरा की छवि वाली प्रियंका उनके नेन-नक्श और नक्शे कदम पर चलकर उनकी भाषा से लोगों के दिलों पर राज करने में कामयाब होंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब शायद कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि प्रियंका उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई हैं इसीलिए तो शायद आजकल प्रियंका को लेकर भी कांग्रेसी नेता नाराजगी जाहिर करने लगे हैं। उन्हे ऐसा लगता है कि प्रियंका लोगों के मन में वो करिश्माई छवि नहीं बना पाई जिनकी उन्हे उम्मीद थी और शायद कांग्रेसियों को अब ये भी लगने लगा है कि कहीं न कहीं धीरे धीरे वे कांग्रेस का भट्टा बिठाने में लगी हैं साथ ही राहुल की साख और विश्वसनीयता को चोट पहुंचाकर खुद उनकी कुर्सी और सत्ता हथियाने का ताना बाना बुन रही हैं।
इधर पंजाब में जो हो रहा है लोग इसके लिए भी प्रियंका को जिम्मेदार मान रहे हैं। कांग्रेसी नेता ही दबी जुबान में आरोप लगा रहे हैं कि सिद्धू को आगे करने का फैसला प्रियंका का ही था जिसका खामियाजा पंजाब में पार्टी को उठाना पड़ रहा है। स्थानीय चुनावों में भाजपा सहित अन्य दलों का सूपड़ा साफ कर देने वाली कांग्रेस सर्वेक्षणों में खिसककर निचले पायदान पर आ गई है। वहीं यूपी में कांग्रेस महासचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहीं प्रियंका को लेकर कांग्रसी नेताओं को ये भी लगता है कि अगर प्रियंका यहां चुनावों में ज्यादा सक्रिय रहीं तो कांग्रेस की दो से एक सीट होते देर नहीं लगेगी।
बहरहाल राहुल और प्रियंका जो कभी कांग्रेस के उत्तराधिकारी माने जा रहे थे उन्हे लेकर पार्टी में ही अब विरोध के स्वर उठने लगे हैं। ऐसे में क्या कांग्रेस को यूपी चुनाव से पहले कोई स्पष्ट बहुमत वाला सक्रिय राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकेगा? क्योंकि यूपी के तुरंत बाद ही पंजाब और राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर कांग्रेस को कोई स्थाई सिपहसालार नहीं मिला तो कहीं कांग्रेस इन राज्यों से भी सत्ता से हाथ न धो बैठे? क्योंकि अभी यहां कांग्रेस की चवन्नी चल रही है।