विजय श्रीवास्तव
जयपुर। कहते हैं दुख बांटने से कम होता है और प्यार बांटने से बढ़ता है। अपनों को खोने का दुख वो ही जानता है जिसके अपने उन्हें छोड़कर चले जाते हैं और अपनों-परिजनों का साथ ऐसे वक्त में न मिले तो दुख और बढ़ जाता है। लेकिन हमारे आसपास इस समय हालात ऐसे नहीं हैं कि हम अपने दुख को सार्वजनिक करें, हो सकता है कुछ लोगों को ये बात बुरी लगे लेकिन एक बार फिर हम लोगों से ये अपील करना चाहते हैं कि सोशल मीडिया से नैगेटिव खबरों को कुछ समय के लिए हटा दें और ऐसा माहौल बनाएं जिससे हम लोगों को खुश रहने की आदत पड़े, पिछले करीब एक साल से हमें जैसे परेशान होने की आदत सी पड़ गई है।
सवाई मानसिंह अस्पताल के चिकित्सक डॉक्टर राकेश अग्रवाल के अनुसार बुरी चीजें और नैगेटिविटी हमारे दिमाग पर जल्द असर करती है इसलिए जितना हो सके खुश रहें और दूसरों के साथ भी खुशियां शेयर करें।
आज इस खबर के पीछे हमारा एक उद्देश्य है कि लोगों के चेहरे पर फिर से खुशियां आ सके और वो तभी संभव है जब हम सब मिलकर इसे सार्थक करने का प्रयास करें। पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें ज्यादा चल रही हैं जिनमें अपनों को खोने की सूचना देते लोग नजर आ रहे हैं। जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम वाट्सएप और वाट्सएप स्टेटस पर आजकल ज्यादातर लोग अपनों को खोने की सूचनाएं प्रेषित कर रहे हैं। इस तरह की सूचनाओं से अस्पतालों में भर्ती मरीज भी कहीं न कहीं ये देख ही रहे हैं और घरों में खुद को आईसोलेट किए हुए लोगों के दिमाग पर नैगेटिव असर पड़ रहा है।
उदयपुर के कोविड प्रभारी डॉक्टर @Shankarbamaniya के अनुसार अगर हमारे आसपास सकारात्मक माहौल होता है तो किसी भी बीमारी को रिकवर करने में ज्यादा समय नहीं लगता लेकिन जब हर तरफ नकारात्मकता होती है तो अच्छे से अच्छे आदमी की भी रिकवरी रेट भी कम हो जाती है, क्योंकि हमारा शरीर भी वही मानता है जो दिमाग कहता है और दिमाग को हम इन दिनों सिर्फ नैगेटिविटी परोस रहे हैं।
लोगों की मन: स्थिति को समझने की जरूरत अभी बहुत ज्यादा है, इस समय सबसे कठिन दौर से हमारा देश गुजर रहा है। कोरोना महामारी का भारत पर असर इन दिनों कुछ ज्यादा ही है और इस सब का कारण अगर आप समझो तो आप खुद ही हो। आज का समय फिर से देशभर में लोगों को सूझबूझ और समझदारी से काम लेने का है। जब सरकारें आपके भले की सोच रही हैं, बार बार लोगों से घर में रहने की अपील कर रही हैं तो फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि बाहर निकलना जरूरी है। शायद इस पर कुछ लोगों का तर्क होगा कि बाहर नहीं जाएं तो घरवालों का पेट कैसे पालेंगे, लेकिन ये बात भी आपको सोचनी चाहिए अभी आप उनकी इतनी चिंता कर रहे हो तो उनका काम जैसे तैसे चल रहा है और ईश्वर न करे अगर कल को आपके साथ कोई अनहोनी हो गई तो फिर कौन उनके बारे में सोचेगा। जब आप होंगे ही नहीं तो फिर परिवार ज्यादा परेशानी और संकट में आ जाएगा। कहते हैं न कि बीमारी किसी का घर देखकर नहीं आती और ये तो महामारी है, तो फिर इससे तो डरने की भी और सावधान रहने की जरूरत है। आज की परिस्थिति से हम सब वाकिफ हैं और हम आपको डरा नहीं रहे हैं लेकिन अस्पतालों और श्मशानों के हालात आपसे छिपे नहीं हैं। तो फिर अगर हम कुछ दिनों के लिए पहले की तरह समझदारी अपनाएं तो फिर से हम अपने देश को कोरोना से लड़ने में विजय दिलवा सकते हैं। यहां ये सब बातें इसलिए लिखी गई हैं क्योंकि आपको हालात तो सब पता है बस जरूरत है तो Four “S” को समझने की। बस जरूरत है तो कुछ ‘समझदारी’, ‘सावधानी’, ‘सीरियसनेस’ और परिस्थितियों से ‘समझौता’ करने की। भारतीय मूल के दुनियाभर के डॉक्टर जो विदेशों में हैं वो भी आज हमें ये शिक्षा दे रहे हैं कि ‘जान है तो जहान है’।
बहरहाल इस सारी बात को लब्बोलुबाव है कि हम जितना हो सके सोशल मीडिया का इस्तेमाल फिलहाल कुछ समय निधन की खबरों के लिए न करें और अगर मजबूरी भी है ऐसा करने की तो सिर्फ अपने पर्सनल कुछ खास लोगों के फोन नम्बर पर ही सूचित करें। ऐसा करने से सिर्फ जरूरतमंदों तक ही आपकी प्रषित की हुई सूचना पहुंच पाएगी और माहौल पैनिक होने से बच जाएगा। गुलजार साहब की चंद पक्तियां हम लोगों और इन परिस्थितियों पर सटीक बैठती हैं जब हम अपनों की खुशियों की आस में खुद को बचाने निकले हैं ..कि “बेहद ख्याल रखा करो अपना मेरी आम सी जिंदगी में बहुत खास हो तुम”