
एक सेठ सब देता है, जो चाहिए, कौन है वो…!
सांवलिया सेठ के नाम से क्यों जाने जाते हैं श्रीकृष्ण, ये है रहस्य
सांवलिया सेठ की कहानी लोगों की जुबानी…!
चित्तौड़गढ़। यूं तो भगवान श्रीकृष्ण के हजारों नाम हैं लेकिन उनमें से एक नाम सांवलिया सेठ भी है। ऐसी मान्यता है कि राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित सांवलिया सेठ के मंदिर में जो भी सच्चे मन से अपनी मुराद लेकर आता है वो खाली हाथ नहीं लौटता। यही कारण है कि श्रीकृष्ण के इस मंदिर की पहचान सांवलिया सेठ के नाम से है। इसके पीछे और भी कई कहानियां हैं जो हमारे इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचेगी।
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इस मंदिर में हर रोज हजारों लोग अपनी समस्याएं और मन की मुराद पूरी करने आते हैं। सांवलिया सेठ का यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इसके पीछे का इतिहास और पौराणिक कथाओं के अनुसार क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी आइये जानते हैं।
कैसे हुआ सांवलिया सेठ मंदिर का निर्माण
पुरानी कहावतों के अनुसार मीराबाई सांवलिया सेठ की भक्त थीं और उन्हें मीराबाई गिरधर गोपाल कहकर पुकारा करती थीं। चूंकि मीराबाई संतों के साथ यहां वहां भ्रमण पर रहती थीं और उनके पास श्रीकृष्ण की मूर्ति हमेशा साथ रहती थी। उनके साथी संत दयाराम के पास भी वैसी ही मूर्ति थी। एक बार औरंगजेब मूर्तियों और मंदिरों का खंडन करते हुए जब वहां पहुंचा तो संत दयाराम ने वो मूर्ति भादसौड़ा के निकट एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर दबा दी।
ऐसा बताया जाता है कि फिर एक दिन 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर को जो कि एक ग्वाला था सपना आया और उसे मूर्ति के दबे होने के बारे में पता चला। जब उस जगह की खुदाई की गई तो वहां चार मूर्तियां निकलीं। उनमें से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसौड़ा लाया गया वहीं संत पुजारी भगत ने उदयपुर मेवाड़ राज परिवार के भींडर ठिकाने के सहयोग से सांवलिया सेठ मंदिर का निर्माण कराया गया और तब से यह मंदिर प्राचीन सांवलिया सेठ के मंदिर के नाम से प्रचलित हुआ।
नानी बाई का मायरा और सुदामा कृष्ण का किस्सा भी जुड़ा है सांवलिया सेठ से
सांवलिया सेठ के बारे में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने नानी बाई का मायरा भरने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सांवलिया सेठ का रूप धारण किया था।
व्यापारी वर्ग में सांवलिया सेठ की इतनी ख्याति है कि हर कोई उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बना लेता है और जहां भगवान खुद आपके साथ हैं तो व्यापार में घाटा होने की बात ही नहीं हो सकती।
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भूखा उठाते जरूर हैं सुलाते नहीं सांवलिया सेठ

ऐसी मान्यता है कि सांवलिया सेठ को याद करने वाला हर भक्त कभी भूखा नहीं सोता, परेशान नहीं होता और उसकी हर मन की मुराद पूरी होती है।
सांवलिया सेठ को लेकर ऐसी कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमें कृष्ण और सुदामा की कहानी भी है जिसमें सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने जब द्वारिका जाते हैं तो उन्हें श्रीकृष्ण छप्पन भोग परोसते हैं ऐसे में सुदामा अपने परिवार की चिंता कर वो खाने से इनकार कर देते तभी भगवान श्रीकृष्ण एक चमत्कार करते हैं और उसके गांव और आसपास के गांव में ब्राह्मणों के 10 दिन के भोजन की व्यवस्था करते हैं।
पर्यटन विभाग ने भी किया खूब काम
आज चित्तौड़गढ में स्थापित सांवलिया सेठ मंदिर की देश विदेश तक में मान्यता है। पर्यटन की दृष्टि भी लोग यहां आते हैं। पर्यटन विभाग राजस्थान सरकार की ओर से यहां बढ़ते पर्यटन के मद्देनजर मंदिर जीर्णोद्धार में अहम योगदान दिया गया है। मेवाड़ आने वाला हर पर्यटक इस मंदिर में दर्शनों के लिए जरूर आता है। हर महीने यहां लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं जिसके लिए राजस्थान सरकार ने कई होटलों-धर्मशालाओं आदि की व्यवस्था करवाई है। साथ ही मंदिर को और भव्य बनाने के लिए पर्यटन विभाग लगातार काम कर रहा है।
