
मुख्यमंत्री गहलोत दे सकते सचिन पायलट को तोहफा !
राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर संशय 19अक्टूबर को होगा खत्म
सोनिया की आज सीएम गहलोत मुलाकात रहेगी बेनतीजा
हालांकि गहलोत नहीं भरना चाहते नामांकन लेकिन सोनिया की नाफरमानी भी नहीं करना चाहते गहलोत
ब्यूरो रिपोर्ट।
जयपुर। प्रदेश की राजनीति में चल रहे ड्रामे का अभी तक अंत नहीं हुआ है। राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत और पायलट के बीच चल रहा लुका-छिपी का खेल अब अपने चरम पर है। मुख्यमंत्री गहलोत चाहते हैं यहीं रहकर जनता की सेवा करना तो पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी चाहते हैं कि कांग्रेस के बचे शेष शासनकाल की गद्दी उन्हें सौंपी जाए अगर गहलोत दिल्ली जाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालते हैं तो। लेकिन शायद गहलोत खेमा नहीं चाहता कि गहलोत दिल्ली जाएं और अगर कहीं वो उनके दिल्ली जाने पर राजी भी हो जाता है तो ये लोग सचिन पायलट को कभी मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते।
आखिर क्यों प्रदेश कांग्रेस में ये रस्साकशी का खेल चल रहा है इसके पीछे कुछ फेक्टर काम कर रहे हैं। इनमें एक फेक्टर तो ये है कि कथित तौर पर पायलट पर कांग्रेस की सरकार को गिराने के षड्यंत्र रचने का आरोप लगा हुआ है। जिसके चलते प्रदेश कांग्रेस के करीब-करीब 60फीसदी मंत्री और नेता गहलोत को ही प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर देखना चाहते हैं। वहीं इन मंत्रियों को पायलट के सीएम बनने पर ईगो की भी प्रॉब्लम हो सकती है। कारण इसका साफ है कि हमेशा से पायलट का विरोध करते रहे विधायकों और मंत्रियों का सचिन पायलट कैसे अपने नए मंत्रिमंडल में यथावत रखेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गहलोत कैबिनेट में कुछ मंत्रियों के बारे में कहा जाता कि वो वैसे तो गहलोत के साथ खड़े नजर आते हैं और जबरदस्त बयानबाजी कर गहलोत के पक्ष में माहौल बनाने में लगे रहते हैं लेकिन कहीं न कहीं अंदरखाने ये भी गलत नहीं है कि वे किसी के जरिए पायलट को भी अंदरखाने सपोर्ट करते हैं। क्योंकि राजनीति मौका परस्ती का गेम है इसलिए मौका और परिस्थिति के अनुसार जो खुद को राजनीति में नहीं ढालता वो गेम से आउट हो जाता है या फिर साइडलाइन कर दिया जाता है।
अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि गहलोत अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन भी गए तो सीएम पद के लिए पायलट को कभी नामित नहीं करेंगे और बिना विधायकों की सहमति के सोनिया गांधी भी पायलट को सीएम का पद नहीं दे पाएंगी क्योंकि ये सारा खेल नम्बरों का है और सभी जानते हैं कि नम्बर्स के गेम में सीएम गहलोत जादूगर हैं।
हालांकि पिछले काफी समय से पायलट ने सीएम के प्रति खुलकर किसी तरह का विरोध नहीं जताया है साथ ही पायलट लंबे समय से किसी भी तरह की बयानबाजी से बचे हुए हैं बताया जा रहा है कि पायलट ग्रुप के सभी लोगों को किसी भी तरह की बयानबाजी से बचने के निर्देश दिए गए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के आंकलन के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस के शासन का अब सिर्फ एक साल बचा है ऐसे में अगर पायलट को सीएम का पद नहीं मिलता है तो फिर उन्हें अगले छह साल तक फिर से सीएम पद के लिए तपस्या करनी होगी, क्योंकि राजस्थान में हर पांच साल में सरकार के बदलने का ट्रेंड है। अब पायलट अपनी राजनीति में खुद को काफी पीछे ले जाने का तैयार नहीं हैं। शायद यही कारण है कि वो राहुल और प्रियंका से अपने संबंधों को भुनाने पर लगे हैं। मुमकिन है कि प्रियंका राजस्थान के विधायकों से पर्सनली बात करके आगे किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होने की बात की गारंटी देकर पायलट को सीएम बनवाने में कामयाब भी हो जाएं।
इस पूरे सियासी ड्रामे में एक बात तो तय है कि अगर सीएम पद पर गहलोत अगर राष्ट्रीय राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो जाते हैं तो उनका राजस्थान लौटना नामुमकिन हो जाएगा। वहीं इसका एक दूसरा पहलू ये भी है कि देशभर में अब कांग्रेस की छवि पहले जैसी नहीं रह गई है वहीं कांग्रेस के काफी मजबूत चेहरे जो कांग्रेस को फिर से खड़ा करने में गहलोत का साथ दे सकते थे अब कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं ऐसे में कांग्रेस की डोर अब कोई नहीं संभालना चाहता। राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत भी ये सारी बाते बखूबी समझते हैं इसलिए वो भी अब राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर कभी नहीं जाना चाहेंगे। इधर सोनिया को समझ आ गया है कि राहुल गांधी के भरोसा पार्टी नहीं चलाई जा सकती इसलिए उन्होंने भी अब कांग्रेस को कोई मजबूत और साफ सुथरी छवि वाला नेता देने का मन बना लिया है। अगर दिग्विजय, शशिथरूर, अंबिका सोनी में से कोई अध्यक्ष पद पर खरा उतर जाता है तो सोनिया गांधी भविष्य के लिए कांग्रेस की जिम्मेदारियों से खुद को काफी हद तक दूर कर लेंगी।
बहरहाल अब सबकी निगाहें इस पर टिकी रहेंगी कि प्रदेश की राजनीति में क्या सरप्राइज मिलने वाला है। ऐसे में क्या पायलट को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत देंगे कोई तोहफा ? ये राजनीति है, यहां कुछ भी संभव है अब डिपेंड करता है कि गहलोत और पायलट पर निर्भर करता है कि वो अपने संबंध किससे कैसे बनाए रखना चाहते हैं। क्योंकि राजनीति नम्बर के साथ किस्मत का भी गेम है कौन, कब, कहां सरदार हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता ।