“मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना” का “जीवन” संकट में !

“मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना” का “जीवन” संकट में !

“मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना” का “जीवन” संकट में !

मुख्यमंत्री की महत्वपूर्ण योजना पर उठ रहे सवालिया निशान, 9 महीने गुजर जाने के बाद भी आमजन को नहीं कोई लाभ, अब तक केवल 8 लोगों को मिला योजना का फायदा,  जबकि परिवहन विभाग मेडिकल को दे चुका 1करोड़ रुपए से ज्यादा, मेडिकल कर्मियों को योजना के बारे में पहली ट्रेनिंग सात माह बाद, राजधानी जयपुर के सीएम की योजना का ये हाल तो, प्रदेश में क्या होगा ?, CMHOस्तर के अफसरों को भी योजना जानने के लिए लेना पड़ रहा गूगल का सहारा, ऐसे में धरातल पर योजना का भविष्य आखिर कौन करेगा तय?, मुख्यमंत्री को लेनी चाहिए योजना की प्रगति रिपोर्ट, करना चाहिए एक्शन, आखिर इतनी बड़ी योजना को गर्त में कैसे डाल सकता है सरकारी महकमा?

 

 

विजय श्रीवास्तव,

जयपुर। करीब नौ महीने पहले मुख्यमंत्री ने जीवन रक्षा योजना की शुरूआत की थी। 16 सितम्बर 2021 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने योजना को लॉन्च करते समय यह परिकल्पना की होगी कि इस योजना से प्रदेश के लोगों का अधिक से अधिक भला हो सके। उपचार के अभाव में किसी की सड़क पर ही मौत न हो और लोगों में एक-दूसरे की मदद करने की प्रवृत्ति फिर से बन जाए। ऐसा हो भी जाता अगर संबंधित विभाग इस योजना को लेकर थोड़ा संजीदगी दिखाते तो। लेकिन अफसोस ऐसा हुआ नहीं, बल्कि इसके विपरीत जैसा अधिकतर सरकारी योजनाओं के साथ होता है कि अवेयरनैस के अभाव में यह योजना भी सिर्फ कागजों में चल रही है और योजना से किसी का भला नहीं हो पा रहा है।

 

क्या है मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना?

यूं तो यह योजना काफी व्यापक है लेकिन हम बात कर रहे हैं इस योजना के एक छोटे से भाग की। दरअसल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लोगों की सड़क हादसों में सड़क पर ही मदद नहीं मिलने के अभाव में बढ़ती मौत के आंकड़ों को कम करने के लिए मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना की शुरूआत की। योजना के अनुसार सड़क हादसे में गंभीर घायल को किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल तक पहुंचाने वाले मददकर्ता को मुख्यमंत्री कोष से तुरंत 5000 रुपए की सहायता राशि और सरकार की तरफ से एक प्रमाण पत्र दिए जाने का प्रावधान है। साथ मुख्यमंत्री की इस योजना के तहत मददकर्ता से पुलिस वाले किसी भी तरह की कोई पूछताछ नहीं करेंगे यह भी शर्तों में जोड़ा गया। मददकर्ता को थाने में गवाही या किसी भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जाएगा, अगर जरूरत होगी तो पुलिस खुद मददकर्ता के घर जाकर उनकी सहमति से उनके बयान दर्ज कर सकेगी। इसके लिए परिवहन विभाग की ओर से पहली बार में 1करोड़ रुपए का बजट मेडिकल को दिया गया।

 

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मेडिकल विभाग की लापरवाही से योजना से नहीं जुड़ पाया आमजन

कोई भी योजना तब तक सफल नहीं होती जब तक कि वह आमजन को इसका सीधा लाभ न मिले। इस योजना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एसी कमरों में बैठ कर लोगों ने ये योजना मुख्यमंत्री की मंशानुसार बना तो दी लेकिन उस पर कोई खास काम नहीं हुआ। इस पर जिम्मेदार मेडिकल ऑफिसर ने तो योजना को ही दो भागों में बांट दिया एक सरकारी अस्पतालों के लिए तो दूसरा भाग निजी अस्पतालों के लिए।

जीवन रक्षा योजना की ऐसी दुर्गति

मुख्यमंत्री जीवन रक्षा योजना की ऐसी दुर्गति पूरे प्रशासन पर सवालिया निशान उठा रही है। इस योजना से प्रदेश के चार अहम विभाग जुड़े हैं। इनमें मेडिकल फिर पुलिस, ट्रांसपोर्ट और पीडब्ल्यूडी विभाग जुड़ें है जिनमें भी मेडिकल विभाग का अहम रोल है।

 इस योजना को प्रदेश में शुरू हुए 9वां महीना चल रहा है लेकिन विभागों में इसको लेकर अभी तक एक-आध को छोड़कर कोई ट्रेनिंग, कोई मीटिंग तक नहीं हुई, जिसका खामियाजा आम जन को भुगतना पड़ रहा है। इन विभागों से जुड़े कर्मचारियों को तो इस योजना के बारे में पता तक नहीं है, न ही संबंधित विभागों ने इसके प्रचार प्रसार की अभी तक कोई नीति ही बनाई है। प्रदेश तो दूर की बात है राजधानी जयपुर में भी पिछले दो तीन दिनों में इस योजना की ट्रेनिंग के नाम पर सबसे अहम मेडिकल विभाग में केवल एक बैठक ही हो पाई है। जिसमें सीएमएचओ प्रथम के क्षेत्राधिकार में आने वाले 73पीएचसी और 23सीएचसी के करीब 193 लोगों को ट्रेनिंग 9महीने बाद दी गई है।

 

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इसलिए योजना कागजों में फांक रही है धूल

क्योंकि जब योजना को धरातल पर उतारने वाले ही योजना के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते तो फिर लोगों तक उसका लाभ कैसे पहुंचा पाएंगे। जयपुर प्रथम के चीफ मेडिकल एंड हैल्थ ऑफिसर नरोत्तम शर्मा ने कुछ जानकारी देते हुए अधिक जानकारी के लिए इस योजना को कार्यान्वित कर रहे डॉ. अखिलेश शर्मा से बात कराई। आश्चर्य तब हुआ जब डॉ. अखिलेश ने मीडिया को गलत जानकारी देते हुए गुमराह करने की कोशिश की और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए पुलिस,परिवहन और पीडब्ल्यूडी विभाग पर जिम्मेदारी डाल दी। मेडिकल विभाग जिस पर योजना का पूरा दारोमदार है उसने इस बारे में IEC (यानि इंफोर्मेशन, एडुकेट और कम्यूनिकेशन) ठीक तरह से नहीं की। जिसके कारण मुख्यमंत्री की महत्वपूर्ण योजना फाइलों में पड़ी धूल फांक रही है। ऐसा नहीं होने का मतलब ये ही निकलता है कि मेडिकल विभाग की लापरवाही के कारण योजना लॉचिंग के आठ महीने बाद भी योजना में लाभार्थी न के बराबर हैं।

डॉ. अखिलेश शर्मा के अनुसार तो उनके विभाग ने योजना की ट्रेनिंग करीब 193 संबंधित डॉक्टर्स और कर्मचारियों को दिलवा दी। दिलचस्प बात ये है कि जिस योजना को मुख्यमंत्री ने आठ महीने पहले चालू किया हो उसके बारे में निजी तो निजी सरकार के 8लोगों को भी पता नहीं है। मीडिया द्वारा जब कुछ निजी और सरकारी अस्पतालों में इस बारे में जानकारी जुटाई गई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। मुख्यमंत्री की इस योजना के बारे में न तो निजी और न ही सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को पूरी तरह से योजना की जानकारी थी। ऐसे में योजना का अंजाम क्या होना है जनता खुद ही इसका अंदाजा लगा सकती है।

 

परिवहन विभाग से मिला संतुष्टिपूर्ण जवाब

योजना की जानकारी के लिए जब परिवहन विभाग में लोगों से पूछा गया तो उन्होंने होर्डिंग्स और साइन बोर्ड दिखा ये जता दिया कि वो वाकई इस योजना के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं। परिवहन विभाग में डिप्टी कमीश्नर निधि सिंह और एसएमओ डॉ. एलएन पांडे ने जब योजना के बारे में विस्तार से बताया तब समझ आया कि मुख्यमंत्री द्वारा शुरू की गई इस योजना के लिए परिवहन विभाग ने मुस्तैदी से योजना पर काम किया है। निधि सिंह ने बताया कि हमारे विभाग की तरफ से 1करोड़ रुपए से अधिक मेडिकल विभाग को आवंटित किया जा चुका है लेकिन पिछले आठ महीनों में केवल 8लोगों को ही योजना का लाभ दिया जा सका है। चौंकाने वाली बात ये ही कि योजना के आंकड़े भी परिवहन विभाग ने मुहैया करवाए, जबकि मेडिकल विभाग इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी तक उपलब्ध नहीं करवा पाया।

 

क्या होना चाहिए था योजना के साथ ट्रीटमेंट ?

क्योंकि ये योजना सीधे तौर पर लोगों को जीवन देने वाली योजना है इसलिए योजना लागू होने के पहले ही महीने में इस बारे में IEC होनी चाहिए थी, साथ ही सरकारी और निजी अस्पतालों में पहले ही महीने से योजना की जानकारी और आवेदन फार्मों का वितरण होना चाहिए था। हर अस्पताल में किसी योजना के लिए किसी भी डॉक्टर या नर्सिंग स्टाफ को योजना का इंचार्ज बनाकर जिम्मेदारी देनी चाहिए थी।

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