
गहलोत के जादूई पिटारे से निकला …. का जिन्न !
नाराजों को मनाने की कवायद
सुरजेवाला से गहलोत होंगे और मजबूत
विजय श्रीवास्तव,
जयपुर। राज्यसभा सीटों पर कांग्रेस आलाकमान की ओर से स्थानीय नेताओं को छोड़ अपने खास लोगों को मौका देने से कांग्रेस के लिए गाहे-बगाहे एक बार फिर संकट खड़ा हो सकता है। राजस्थान से राज्यसभा के लिए तय माने जा रहे नामों को दरकिनार कर आलाकमान के इस फैसले ने एक बारगी सबको चौंका दिया। राजस्थान के नेताओं को उम्मीद थी कि उन्हें अपने प्रदेश की ओर से राज्यसभा में नेतृत्व करने का मौका मिलेगा लेकिन इसके उलट दिल्ली से आलाकमान ने राजस्थान पर तीन नाम थोप दिए हैं। अंदरखाने चर्चा है कि राजस्थान कांग्रेस के स्थानीय वरिष्ठ नेताओं ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक मुस्लिम, जाट, ब्राह्मण, राजपूत, गुर्जर अनुसूचित जाति के लिए राज्यसभा सीट की मांग की थी लेकिन आलाकमान ने इसे नकारते हुए अपना फैसला सुना दिया है जिसे लेकर नेताओं में संतुष्टि नजर नहीं आ रही है।
भंवर जितेंद्र, रघुवीर मीणा को छोड़ पैराशूट ही क्यों ?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पिछले कई दिनों से राज्यसभा के उम्मीदवारों को लेकर चल रही मशक्कत के बाद अचानक दिल्ली से रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी और मुकुल वासनिक को राजस्थान पर थोप दिया गया, जिसे कांग्रेस सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं कर रहे। हालांकि ये बात अलग है कि जिससे बात करो वो केवल दबी जुबान में बात कर रहा है। फिलहाल खुलकर कोई सामने नहीं आना चाहता। ऐसे में आलाकमान के इस फैसले से हर कोई हतप्रभ भी नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस में भंवर जितेंद्र सिंह और प्रियंका के नामों को लेकर चर्चा प्रबल थी वहीं गुलामनबी आजाद और रघुवीर मीणा भी राजस्थान से कांग्रेस के प्रत्याशी माने जा रहे थे। ऐसा माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रणदीप सुरजेवाला को प्रदेश से राज्यसभा भेजने के लिए प्रयासरत थे जिसमें वो कामयाब भी हुए। अब राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो एक नाम तक तो ठीक था लेकिन तीनों ही प्रत्याशियों में बाहरी यानि पैराशूट प्रत्याशियों को उतारना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है।
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सीएम सलाहकार की नाराजगी, भाजपा का
सीएम के
सलाहकार संयम लोढ़ा भी कांग्रेस के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं तो वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने तंज कसते हुए कहा कि प्रदेश में विशाल चिंतन के बाद भी कांग्रेस मंथन से राजस्थान का एक नेता भी राज्यसभा के लिए नहीं निकाल पाई। जानकार सूत्रों की मानें तो फिलहाल राजस्थान में गहलोत सरकार के काफी विधायक की उनसे नाराजगी की चर्चा है। ऐसा कहा जा रहा है कि विधायक अपने नेताओं में से ही किसी को राज्यसभा में भेजना चाहते थे। राजस्थान में एक या दो नहीं बल्कि तीनों ही सीटों के लिए बाहरी उम्मीदवारों का चयन उन्हें समझ से परे है। इसी के चलते नाराज नेताओं को मनाने में सरकार जुटी है।
रूठों को मनाने के लिए तबादलों का जिन्न
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री गहलोत के लिए कहा जाता है कि वो रूठों को मनाने में महारत रखते हैं, ऐसे में गहलोत ने विधायकों में बगावती सुर नहीं पनपें इसके लिए सोमवार को एक नया पासा फेंका। लंबे समय से विधायकों को तबादला-पोस्टिंग का इंतजार था लेकिन गहलोत सरकार ने नई तबादला नीति के लिए सब कुछ रोका हुआ था। अब अचानक सोमवार को मुख्यमंत्री गहलोत की तबादलों से बैन हटाने की “काटी” जबरदस्त चर्चा में है। कहा जा रहा है कि गहलोत ने इनकी नाराजगी को दूर करने के लिए अपने जादुई पिटारे में से तबादले के जिन्न को बाहर निकाला है। लगभग नौ माह से तबादलों पर लगी रोक हटाने के पीछे ये माना जा रहा है कि विधायकों का ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़े कामों में बड़ा दखल होता है ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि गहलोत का अपने विधायकों को तबादलों के जरिए फायदा देकर उनकी पीड़ा को कुछ कम करने का प्रयास है। गहलोत राज्यसभा चुनावों में सभी 123 विधायकों के वोट अपने पाले में चाहते हैं जिसको लेकर उन्होंने यह महत्वपूर्ण फैसला लिया है।
बहरहाल ये फैसला सही है या गलत इसका निर्णय आगामी कुछ दिनों में हो जाएगा। लेकिन इस सब के बीच एक बात तय है कि राजस्थान में सुरजेवाला के आना से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आलाकमान के और नजदीक पहुंच जाएंगे।
