प्रशांत किशोर को मिला “दिव्य-ज्ञान”, आए बैकफुट पर…!

प्रशांत किशोर को मिला “दिव्य-ज्ञान”, आए बैकफुट पर…!

राजनीतिक गलियारे में चर्चा इसके पीछे खुद पीके की ही रणनीति…

विजय श्रीवास्तव,

पटना, बिहार। “राजनीति के चाणक्य” की क्या है नई नीति ? गुरुवार को चुनावी चौसर और राजनीति प्रंबधन के “मास्टर माइंड” प्रशांत किशोर (PK) ने एक प्रेसवार्ता कर सबको चौंका दिया। पीके ने एक प्रेसवार्ता में हाल ही में अपनी ही घोषणा से पीछे हटते हुए कहा कि “मैं कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाने जा रहा हूं। पीके के इस नए बयान या पैतरे के पीछे क्या राज है? ये या तो समय ही जानता है या फिर खुद पीके ही इस राज का पर्दाफाश कर सकते हैं।
भाजपा या कांग्रेस में बात न बनने के बाद @Prashant Kishor ने 2 मई को “जन सुराज” के जरिए बिहार की जनता के बीच सीधे मैदान में उतरने का ऐलान किया था। लेकिन गुरुवार को फिर प्रशांत किशोर ने पासा पलटते हुए अपनी बात को बदल दिया। पीके ने कहा “पहले तीन महीने राज्य में पैदल यात्रा करुंगा, हर घर,गली मोहल्ले के लोगों के बीच उनकी राय जानूंगा। यात्रा के बाद लोगों के फीडबैक से तय आगे की रणनीति तय होगी। ‘फिलहाल मैं कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाने वाला हूं। ‘न ही मैंने कोई राजनीतिक मंच बनाया है और न ही आज ऐसी कोई घोषणा करने वाला हूं”

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पीके के इस बयान से एक बार फिर सस्पेंस का माहौल बन गया है। राजनीतिक गलियारों में पीके के इस नए फैसले या बयान के पीछे कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद पीके को फिर किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संकेत मिल रहे हैं। लेकिन प्रशांत भाजपा, कांग्रेस या नीतीश किसके इशारे पर बिहार में “जन सुराज” की बात कर रहे हैं? क्या इन तीनों में से किसी दल के लिए पीके कर रहे हैं कोई नई रणनीतिक तैयार? क्या किसी दल से मिले हैं पीके को कोई अंदरूनी आदेश? आखिर क्यों पीके खड़े दम तीन दिन में बदल गए अपने ही बयानों से ?
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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो शायद पीके को कहीं से मिला है “दिव्य ज्ञान”, कि राजनीति करने के लिए अभी सारी उम्र पड़ी है। फिलहाल पैसा कमाने का वक्त है, उनकी बाजार में पूछ है, उसका उन्हें अभी और कुछ समय फायदा उठाना चाहिए। दूसरों के लिए रणनीति बनाकर ही वो दौलत और शोहरत हासिल कर सकते हैं। वहीं एक दूसरी बात भी है सुर्खियों में कि पीके को फिलहाल के लिए रुकना चाहिए अपने इस फैसले को लेकर। हालांकि हमारी वेबसाइट @Dusrikhabar.com ने भी दिए थे इस बात के संकेत कि पीके के लिए राजनीतिक पार्टी बनाने का अभी नहीं है सही वक्त। पीके को थोड़े समय और राजनीति में रहकर प्रत्यक्ष रूप से किसी दल के बैनर तले बनानी चाहिए खुद के लिए जमीन। उसके बाद ही पीके को ऐसे फैसले पर विचार करना चाहिए और गुरुवार की पीके की प्रेसवार्ता के बाद ये सारी बातें सच होती नजर आ रही हैं।

बहरहाल प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति के बड़े-बड़े योद्धा अब अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे हैं। क्योंकि प्रशांत किशोर को लोग यूं ही राजनीतिक प्रबंधन का “चाणक्य” नहीं कहते, शायद उनकी चालों को समझना अभी भी राजनीतिक दलों और विश्लेषकों के लिए “टेड़ी खीर जैसा” है।

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