…और थम गया पीके के कांग्रेस में आने का शोर

…और थम गया पीके के कांग्रेस में आने का शोर

…और थम गया पीके के कांग्रेस में आने का शोर

पीके को शायद लग गया कांग्रेस में जाना हवा से बरूखी जैसा

कहते हैं हवा, पानी और आग से जितना बचें उतना ही बेहतर

इससे टकराने वालों का अक्सर खत्म हो जाता है नामो-निशां

अब राजनीतिक गलियारों में हो रही प्रशांत किशोर के निर्णय की चर्चा

पीके ने कांग्रेस की दहलीज पर आते-आते रोक लिया खुद को

और कांग्रेस को पीके ने दे डाली नसीहत भी

कांग्रेस के लिए प्रशांत किशोर की नसीहत भी बनी चर्चा का विषय

पीके ने कहा- कांग्रेस को मुझसे ज्यादा एक सशक्त नेतृत्व की है जरूरत

अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस फिर से खुद को संभालने और खड़ा करने में होगी सक्षम

और वैसे भी सोनिया गांधी और पीके के काम करने का नहीं एक जैसा “स्टाइल”

पीके “फ्री हैंड” होकर काम करने को देते हैं “प्रिफरेंस”, वहीं सोनिया चलतीं सबकी राय से

ऐसे में दोनों का एक साथ होना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं

क्योंकि पीके के आने से सबको लग रहा था कि पार्टी को फिर से मिलेगी संजीवनी

इसी को लेकर कांग्रेस ने बुनने शुरू कर दिए थे ताने-बाने

कई-कई दिनों की मीटिंगें, फिर कागजों पर कांग्रेस के रोड मैप की तैयारी, सब हुई धूमिल

और कांग्रेस के सभी प्रस्तावों को ठुकराकर पीके ने अब दिखाया कांग्रेस को “आईना”

कहा पार्टी को अपनी टूटी दरकती दीवारों को पहले करना चाहिए मजबूत

नहीं तो पार्टी अपने कुनबे के साथ नहीं रह पाएगी इस इमारत के नीचे

प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर इस तरह कांग्रेस के लिए जाहिर की अपनी मंशा

और एक झटके में पार्टी के कार्यकर्ताओं की उम्मीद मानो जैसे डूब ही गई

2024 के आम चुनावों को लेकर अब कार्यकर्ताओं में नजर आने लगी है हताशा सी

हालांकि पीके हैं एक प्रोफेशनल व्यक्तित्व से जुड़े आजाद पंछी

वो लंबे समय तक जुड़कर, नियमों में बंधकर नहीं रह सकते किसी विचारधारा के साथ

क्योंकि कांग्रेस पीके के अनुभव, रणनीतिक कौशल और कला का लेना चाहती है लाभ

और बदले में पीके को बंधकर रहना होगा पार्टी से जुड़े नियमों और कायदों से

वहीं सोनिया की “वर्किंग स्टाइल” पर मंथन के बाद पीके ने एक कदम हटाया पीछे

और रणदीप सुरजेवाला के ट्वीट से कांग्रेस और पीके के बीच सबकुछ हो गया एकदम साफ

लेकिन अभी भी कुछ पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को हैं पीके से उम्मीद

कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने में पीके से सहयोग की उम्मीद

तो क्या कांग्रेस की चुनावी रणनीति बनाने में भी पीके नहीं करेंगे सहयोग

अभी इस पर नहीं कहा जा सकता कुछ भी, क्योंकि राजनीतिक और जंग में सब है जायज

दूसरी तरफ ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस-पीके की बातचीत टूटी है, दोस्ती नहीं

इसलिए पीके की सवारी वाला ऊंट किस करवट बैठेगा? ये कोई नहीं बता सकता

शायद खुद प्रशांत किशोर भी इसको लेकर फिलहाल नहीं करेंगे कोई खुलासा

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