पहला का कृषि कानून:- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020, दूसरा कृषि कानून:- कृषि कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक 2020 और तीसरा कृषि कानून:- आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 तीनों ही कानूनों में अगर गौर से देखा जाए तो किसानों को इससे कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि किसान इन कानूनों से और मजबूर और विवश हो जाएगा अपनी फसलों के बेचान को लेकर। इन नए कृषि कानूनों से कालाबाजारी, जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे में सेठ और पूंजीपतियों द्वारा किसानों का शोषण और बढ़ जाएगा साथ ही देश का किसान फिर से आत्महत्या जैसे कदमों की ओर बढ़ेगा ( ये विचार राजस्थान के कुछ किसान परिवारों के हैं)।

किसानों की बर्बादी के लिए बिहार का उदाहरण!
कृषि कानूनों को लेकर किसानों का केंद्र सरकार पर आरोप है कि जैसे 2006 में बिहार में सरकारी मंडी व्यवस्था खत्म कर दी गई थी और अब 14 साल गुजर जाने के बाद भी वहां का किसान आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है और ना ही उनके हालातों में कोई सुधार हुआ है, बल्कि वहां के किसानों की स्थिति देश के अन्य राज्यों के बदले और भी बदतर हो गई है। यानी किसानों को आज वहां सबसे कम दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है, जिसके चलते उनके सामने भयंकर आर्थिक संकट पैदा हो गया है। शायद इसी के चलते वहां का मजबूर और लाचार किसान पलायन कर रहा है, अगर बिहार में सब सही होता तो कृषि में आज बिहार अग्रणी राज्य बन गया होता, साथ ही वहां के किसान आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होते।
कृषि कानूनों के विरोध में राजनीतिक दल
मोदी कैबिनेट से कृषि कानूनों के विरोध में इस्तीफा देकर केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर किसानों के साथ आ खड़ी हुई। फिर प्रकाश सिंह बादल ने पद्म विभूषण सम्मान हटाकर अपना विरोध प्रकट किया तो अकाली दल के सुखबीर सिंह ढींडसा ने भी पद्म भूषण सम्मान लौटा कर केंद्र सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया। इधर कांग्रेस आम आदमी पार्टी और अकाली दल केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और किसानों का साथ दे रहे हैं।

अभी यह है किसान आंदोलन की स्थिति
किसान और उनका परिवार अपनी मांगों को लेकर अडा है और दिल्ली में केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी है। फिलहाल किसान कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसके कारण दिल्ली और आसपास के राज्यों में लोगों का सामान्य जनजीवन भी काफी प्रभावित हुआ है लेकिन किसान चूंकि हमारे अन्नदाता हैं इसलिए आम आदमी उनका विरोध भी नहीं कर रहा है। वहीं अगर केंद्र सरकार अभी तक अपने फैसले को लेकर स्थिर है यानी वह अपने नए कृषि कानूनों को बदलने के मूड में बिल्कुल नजर नहीं आ रही है। अगर ऐसा ही चला तो किसानों ने दिल्ली की खाद्य आपूर्ति चारों तरफ से बाधित करने का ऐलान किया है और इसके लिए किसानों ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम भी दे दिया है।
राजस्थान में भी कृषि कानूनों का विरोध
राजस्थान में केंद्र में बने नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों में आक्रोश है। किसान राजस्थान से एकजुट होकर दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं, वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री @ashokgehlot ने भी नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि “केंद्र सरकार ने संसद में तीनों कृषि बिल असंवैधानिक तरीके से पास करवाए हैं” गहलोत ने यह भी कहा कि 4 मुख्यमंत्रियों ने बिल के संबंध में बात करने के लिए राष्ट्रपति @ramnathkovind से समय मांगा था लेकिन राष्ट्रपति ने उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया। इधर प्रदेश के कुछ किसानों से चर्चा में सामने आया है कि कृषि कानून किसानों के पक्ष में तो नहीं है लेकिन जो किसान मोदी और भाजपा विचारधारा रखते हैं वह केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि वह भाजपा समर्थित हैं।
कृषि विशेषज्ञों की माने तो फिलहाल देश के 14 करोड़ किसानों को सरकार के सहारे की जरूरत है। केंद्र सरकार का दावा था 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का। लेकिन सरकार द्वारा लाए गए इन विधायकों से तो किसान की लुटिया ही डूबती नजर आ रही है। वहीं शांताकुमार समिति का भी यह दावा है कि केवल 6% किसान ही एमएसपी का लाभ उठा पाते हैं शेष 94% किसान तो बाजा और बिचौलियों पर ही निर्भर रहते हैं।
बहरहाल आज फिर किसानों की केंद्र सरकार के साथ पांचवें दौर की वार्ता के लिए बैठक है। इसमें किसानों का पूरा फोकस रहेगा कि वह तीनों बिलों को रद्द करवाने में कामयाब हो जाएं लेकिन केंद्र सरकार की हठधर्मिता खत्म होने पर ही इसका कोई समाधान निकल पाएगा।