– विजय श्रीवास्तव–
जयपुर। रंगों का त्योहार होली आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इतना प्रसिद्ध हो गया है कि विदेशी सैलानी हमारे इस रंगों के पर्व को देखने और इसके रंग में रंगने के लिए विदेशों से खास तौर पर भारत आते हैं। यूं तो देशभर में हर राज्य में होली का अपना एक महत्व है और हर राज्य में होली अपने अलग अंदाज में मनाई जाती है लेकिन यूपी में बरसाने की होली और राजस्थान में शेखावाटी की होली का अपना विशेष महत्व है।
फाल्गुन मास में आने वाला त्योहार हिंदू मान्यता के अनुसार दो दिन तक मनाया जाता है जिसमें पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन होली खेली जाती है। लेकिन राजस्थान और यूपी में होली के त्योहार की तैयारियां महीनों पहले से ही शुरू हो जाती है। दोनों ही राज्यों में करीब 15 दिनों पहले से ही होली के त्योहार की गूंज सुनाई देने लगती है। राजस्थान के शेखावाटी का चंग नृत्य होली पर्व पर महाशिवरात्रि से होली तक होता है। चंग लोकनृत्य में गाई जाने वाली लोकगायकी को ‘धमाल’ के नाम से जाना जाता है। शब्दों के बाण, भावनाओं की उमंग और मौज-मस्ती के रंग मिश्रित धमाल हर किसी को गाने व झूमने पर मजबूर कर देती है।
फाल्गुन शुरू होते ही राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में चंग के साथ होली का हुड़दंग हर गली मोहल्ले में सुनाई देने लगता है। इन दिनों शेखावाटी के प्रसिद्ध चंग की थाप पर नृत्य और गीतों के सुरीले बोले हर तरफ सुनाई देने लगते हैं। इस नृत्य में पुरुष हाथों में चंग लेकर एक सर्किल बनाकर नाचते गाते नजर आते हैं। चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता पहनकर कमर में कमरबंद और पाँवों में घुंघरू बाँधकर ‘होली’ के दिनों में किये जाने वाले चंग नृत्य के साथ लम्बी लय के गीत धमाल या होली के गीत भी गाये जाते हैं। कहीं कहीं होली के हुड़दगी गली-मोहल्लों में होली के दिन टोलियां बनाकर चंग की थाप पर घरों के बाहर जाकर नाचते गाते हैं। होली के एक पखवाड़े पहले चंग नृत्य शुरू हो जाता है। जगह जगह भांग घोटी जाती है।
होली के करीब 15दिन पहले शेखावाटी अंचल के झुंझुनू, सीकर, चूरू, और बीकानेर जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में फतेहपुर शेखावाटी, रामगढ़ शेखावाटी, मण्डावा, लक्ष्मणगढ़, बिसाऊ में हर गांव कस्बे में रात्रि में लोग एकत्रित होकर चंग की मधुर धुन पर देर रात्रि तक धमाल (लोक गीत) गाते हुए मोहल्लों में घूमते रहते हैं। होली के अवसर पर बजाया जाने वाला ढप भी इसी क्षेत्र में ही विशेष रूप से बनाया जाता है। ढप की आवाज तो ढोलक की तरह ही होती है, मगर बनावट ढोलक से बिल्कुल अलग होती है। डप ढोलक से काफी बड़ा व गोल घेरे नुमा होता है। होली के प्रारम्भ होते ही गांवों में लोग अपने-अपने चंग (ढप) संभालने लगते हैं। होली चूंकि बसंत ऋतु का प्रमुख पर्व है तथा बसंत पंचमी बसंत ऋतु प्रारम्भ होने की द्योतक है। इसलिए इस अंचल में बसंत पंचमी के दिन से चंग (ढप) बजाकर होली के पर्व की विधिवत शुरुआत कर दी जाती है।