नाम गुम जाएगा….!

नाम गुम जाएगा….!

यूपी से शुरू हुई शहरों के नए नामकरण की परिपाटी

शहरों का नाम परिवर्तन राजनीति का नवेला मुद्दा

शहरों, कस्बों के नाम परिवर्तन, तो कहीं लोकोक्ति मुहावरे भी बदले जा रहे

 

विजय श्रीवास्तव

 

लखनऊ । चुनाव आते ही शुरू हो जाती राजनीतिक दलों की जोर आजमाइश। आम तौर पर राजनेता और राजनीतिक दल लोगों के मन पर असर डालने के लिए कोई न कोई ऐसा चुनावी मुद्दा तलाश ही लेते हैं जिससे वो और उनकी पार्टी प्रदेश के लोगों के दिलो-दिमाग पर अपनी कोई छाप छोड़ सके और आने वाले चुनावों में इसका पूरा लाभ उनकी पार्टी को मिल सके। इसके लिए पार्टियों को अक्सर भावनात्मक मुद्दों की तलाश रहती है। यूपी में शहरों के नाम बदलने का मुद्दा भी कुछ ऐसा ही रूप लेता जा रहा है। यूपी में इस पर राजनीति पिछले कुछ वर्षों में ही शुरू हुई है लेकिन ये ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय तक लोगों के जहन में रहता है, आखिर उनके प्रदेश के एक शहर का नाम जो बदला जा रहा है। आखिर जिस नाम को वो वर्षों से पुकारते आए हैं, जो अपने पीछे कोई न कोई कहानी लिए हुए है अब उसी नाम को अचानक नए नाम से परिवर्तित कर दिया जाए तो बात का बतंगड़ तो बनेगा ही। बस यहीं से पार्टियां अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना शुरू कर देती हैं। सत्तारूढ़ दल शहरों के नामकरण कर अपनी पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं जबकि विपक्ष में बैठी पार्टियां उस नाम के पीछे की कहानी और लोगों से उस नाम के जुड़ाव को लेकर अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं।

 

 

गौरतलब है कि यूपी के रेलवे स्टेशन से शुरू हुई नाम बदलने की प्रथा अन्य राज्यों के अब शहरों और तहसीलों के नाम बदलने तक आ पहुंची है। यूपी में मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन रखने के बाद अब इस तहसील का नाम भी यही रख दिया गया। इसके बाद तो शहरों के नाम बदलने की जैसे प्रथा ही चल पड़ी। मुगलसराय के बाद इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रख दिया गया। फिर फैजाबाद शहर का नाम भी चर्चा का विषय बन गया और लंबी जद्दोजहद के बाद श्रीराम जन्मभूमि के रूप में फैजाबाद का नामकरण कर अयोध्या रख दिया गया।

यूपी की योगी सरकार ने तो राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले ही अयोध्या को पूरी तरह बदल दिया था। अयोध्या शहर में दिवाली का ऐसा जश्न मनाया गया, जिसने यहां के लोगों को भगवान राम के युग की स्मरण कराया। दिवाली पर इतने दीप जलाए कि लोगों का यह प्रयास गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। साथ ही फैजाबाद जिले का नया नामकरण कर अयोध्या रख दिया गया। जैसा कि हो भी रहा है यूपी के स्थानीय लोगों का भी यही मानना है कि भाजपा यूपी में सभी मुस्लिम शहरों, कस्बों, तहसीलों और प्रचलित स्थानों का नाम बदलकर हिंदू संस्कारों के अनुसार बदल रही है।

यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और एक बार फिर यूपी सरकार देशभर में शहरों के नए नामकरण को लेकर चर्चा में है। इस बार एक दो नहीं बल्कि करीब 10 से 12 शहरों के नामों का नवेला नामकरण किए जाने की डिमांड लोगों की तरफ से आने लगी है। शायद यही कारण है कि चुनावों में एक बार फिर भाजपा को शहरों के नामकरण का भावनात्मक मुद्दा मिल गया है जिसे शायद योगी और केंद्र की मोदी सरकार मिलकर भुना भी लेगी। जिन शहरों का नाम बदलने की मांग है उनमें अलीगढ़ का नाम प्रमुख है इसका नाम बदलकर हरीगढ़ करने की चर्चा है। गौरतलब है कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कल्याण सिंह के काल में अलीगढ़ का नाम बदलने की कोशिश की गई थी। इसके अलावा आगरा का नाम अग्रवन, आजमगढ़ का आर्यमगढ़, गाजीपुर का गाधिपुर, सुल्तानपुर का कुशीभवनपुर रखने की तैयारी चल रही है। साथ ही गाजियाबाद का नाम बदले जाने की भी चर्चा है। इधर  मैनपुरी और फिरोजाबाद के जिला-पंचायतों ने नाम बदलने के प्रस्ताव भी सरकार को भेजे गए हैं। साथ ही फिरोजाबाद का नाम बदल कर चंद्रनगर करने की मांग भी की गई है। वहीं बस्ती जिले का नाम बदल कर वशिष्ठनगर, मिर्जापुर को विंध्यधाम बनाने की मांग इन शहरों के लोगों की तरफ से की गई है। यूपी से इतर दिल्ली में हुमायुपुर का नाम बदलकर हनुमानपुर करने की मांग भी लंबे से अटकी हुई है।

हालांकि ये पूरी तरह राजनीतिक मुद्दा है, लेकिन कुछ स्थानीय और वरिष्ठजनों की मानें तो यूपी में तो ये सारा खेल सत्ता हथियाने के लिए हो रहा है। तभी तो सभी मुस्लिम शहरों के नाम बदले जाकर शहरों, रेलवे स्टेशन और तहसीलों व गांवों के नाम भी बदलकर हिंदू संस्कारों के अनुसार रखे जा रहे हैं। इधर चुनाव नजदीक आने के साथ ही यूपी और पंजाब में किसानों को भी अब तवज्जो मिलने लगी है। लेकिन भाजपा इन सब पार्टियों से एक कदम आगे हिंदू भावनाओं की संतुष्टि पर अपना फोकस किए हुए है। इसी प्रयास में भाजपा हरियाणा में लोकोक्ति और मुहावरे तक बदलने में जुटी है तभी तो हरियाणा में “गोरखधंधा” शब्द के प्रयोग पर ही रोक लगा दी गई है। गुरु गोरखनाथ के शिष्यों और भक्तों की भावनाओं से जोड़कर हरियाणा सरकार के इस फैसले को देखा जा रहा है।

बहरहाल यूपी-पंजाब और उसके बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव अगले दो सालों में होने हैं ऐसे में अक्सर जो राजनीतिक पार्टियां करती आई हैं उसी तरह के प्रयास एक बार फिर से प्रदेशों की हवा में महसूस किए जा रहे हैं। बस फर्क इतना है कि केंद्र में भाजपा सरकार है तो जिन राज्यों में भाजपा सरकार में नहीं भी है तो उसे केंद्र का पूरा सहयोग मिल रहा है। अब कहीं खैरात बांटने का काम राजनीतिक नियुक्तियों और सालों से पेंडिंग चल रहे केसों पर फैसले करके हो रहा है। कहीं-कहीं तो ऐसा लग रहा है कि भारी आर्थिक संकट झेल रहे और जीवन में कई तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे हिंदुओं की भावनाओं को संतुष्ट करने के लिए अगले कुछ दिन में मुस्लिम नाम वाले शहरों और जिलों का नाम बदल दिया जाएगा।

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