
कांग्रेस के राजस्थान में एक तीर से दो निशाने !
संगठन की मजबूती के साथ-साथ सियासी घमासान रोकने की कवायद
राजस्थान में विस्तार, फेरबदल या पुनर्गठन?
कामराज फॉर्मूले के पीछे क्या वाकई संगठन की मजबूती का सवाल ?
विजय श्रीवास्तव
जयपुर। राजस्थान के सियासी हालात किसी से छिपे नहीं हैं। जिस तरह की राजनीति प्रदेश में इन दिनों चल रही है उससे प्रदेश में विकास कार्यों पर लगभग विराम सा लगा हुआ है। इधर मंत्रियों की सांसे ऊपर नीचे हो रही हैं कि इस विस्तार या फेरबदल में कहीं उनका तो नम्बर, कुछ मंत्रियों के काम से जनता खुश नहीं है तो कुछ लोगों ने वैसे ही सरकार के नाक में दम कर रखा है। दूसरी ओर विधायक जिनको अभी तक मौका नहीं मिला है मंत्रिमंडल में ऐसे विधायकों में अपनी बारी को लेकर खुशी साफ तौर पर नजर भी आने लगी है। कुछ निर्दलीय और कुछ वरिष्ठों के लिए शायद बिल्ली के भाग का छीका फूट जाए।

कांग्रेस के राजस्थान में एक तीर से दो निशाने !
इधर दिल्ली में काफी मशक्कत के बाद शायद आलाकमान को कांग्रेस में सब कुछ सही करने का कोई फॉर्मूला मिल गया है जिसके कारण प्रदेश में चल रहे घमासान को शायद अब ठीक किया जा सके। जानकारों के अनुसार इस फॉर्मूले के तहत प्रदेश के ताकतवर मंत्रियों को आलाकमान की सहमति से संगठन में शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है। इसके पीछे ये तर्क दिया जा रहा है कि इन मंत्रियों को संगठन के माध्यम से आने वाले विधानसभा चुनावों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। सूत्रों के अनुसार इसके लिए सभी मंत्रियों से इस्तीफा लेकर एक बार नए सिरे से मंत्रियों में विभागों का बंटवारा हो सकता है। फिलहाल मंत्रिमंडल में 9 मंत्रियों का पद रिक्त चल रहा है शायद इस विस्तार में प्रदेश को 9 और नए मंत्री भी मिल सकते हैं।
हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंशा है कि फेरबदल की जगह मंत्रिमंडल विस्तार करना ज्यादा उचित होगा लेकिन आलाकमान के फैसले से ही अब ये तय होगा की राजस्थान में विस्तार होगा, फेरबदल होगा या पुनर्गठन होगा। गौरतलब है कि हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलेजा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सोनिया गांधी का मैसेज देने जयपुर आई थीं जिसके बाद से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि गहलोत कैबिनेट में शामिल 20 में से 10 मंत्रियों को हटाया जा सकता है जिनमें से 60फीसदी मंत्रियों को संगठन की अहम जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। कांग्रेस चाहती है कि मजबूत मंत्रियों का इस्तेमाल संगठन को और मजबूत करने में किया जाए और प्रदेश में कामराज फॉर्मूला लागू किया जाए।
कामराज फॉर्मूला के क्या हैं फायदे ?
मद्राया में 1960 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज ने कांग्रेस को मजबूत करेन के लिए कामराज योजना दी थी। जिसमें पार्टी के सशक्त मंत्रियों को संगठन के लिए काम करने की सलाह दी थी, जिसमें खुद मुख्यमंत्री को भी पद छोड़कर संगठन को मजबूत करने के लिए काम करने की सलाह दी गई थी। ये फॉर्मूला इतना कारगर था की मद्रास के मुख्यमंत्री ने खुद तो इस्तीफा दिया ही साथ ही लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई जैसे नेताओं ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था। कहा जाता है कि कुमारास्वामी कामराज ने बतौर किंगमेकर अपने इस फॉर्मूले से लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया।
तो क्या राजस्थान के मुख्यमंत्री के लिए ये इशारा है?
जानकार सूत्रों की मानें तो राजस्थान में सियासी घमासान खत्म करने के लिए शायद ये फॉर्मूला लाया गया है और जब इस फॉर्मूले के अनुसार खुद मुख्यमंत्री रहे कामगार ने भी उस समय अपने पद से इस्तीफा दे दिया था तो क्या ये फॉर्मूला लाकर आलाकमान गहलोत को ये इशारा कर रहा है कि उन्हें भी राष्ट्रीय राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में आ जाना चाहिए? तो क्या ये फॉर्मूला सचिन पायलट को सीएम पद देने के लिए कोई सीढ़ी तो नहीं?
राजस्थान में कामगार फॉर्मूला क्यों जरूरी
पिछले विधानसभा चुनाव जीतकर राजस्थान में भले ही कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने में सफल रही हो, लेकिन सरकार बनने के बाद ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी, कारण स्पष्ट है कि सभी मजबूत नेता जो संगठन में बड़ी भूमिकाओं में थे वे सब सरकार में मंत्री पदों पर आसीन हो गए। अब संगठन कमजोर होता गया परिणाम ये निकला कि लोकसभा चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान हुआ। भाजपा में फिलहाल बंदर-बिल्ली का खेल चल रहा है जिसमें बाजी मारकर कांग्रेस फिर से 2023 में प्रदेश में खुद को रिपीट कर सकती है लेकिन वो तभी संभव होगा जब संगठन की बागडोर सशक्त हाथों में आए।
इन मंत्रियों को मिलेगी संगठन में अहम जिम्मेदारी
रघु शर्मा- जैसे वरिष्ठ नेता के अनुभव को भी पार्टी संगठन में इस्तेमाल करना चाहती है। उन्हें युवक कांग्रेस चलाने का भी अनुभव प्राप्त है। दूसरा बड़ा नाम है गोविंद सिंह डोटासरा, शिक्षामंत्री रहते हुए प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद कुछ खास नहीं कर पाए इसलिए उन्हें शिक्षामंत्री पद से मुक्त किया जा सकता है, इसके लिए वे स्वयं भी ऐसी इच्छा जाहिर कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेस के अनुसार वे संगठन का कार्य अच्छे से कर सकते हैं इसलिए उन्हें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाए रखा जाएगा
इसी क्रम में तीसरा और अहम नाम प्रताप सिंह खाचरियावास है। उनकी आक्रामक कार्यशैली के चलते वे कांग्रेस के लिए एक दमदार नेता साबित हो सकते हैं उन्हें राजस्थान में कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष या फिर केंद्र में मोदी की टीम से दो दो हाथ करने वाली टीम में राष्ट्रीय प्रवक्ता का पद दिया जा सकता है। हालांकि सूत्र बताते हैं कि खाचरियावास प्रदेश की राजनीति छोड़ केंद्र की राजनीति में जाने के इच्छुक नहीं हैं तो हो सकता है वो प्रदेश में रहें लेकिन सियासत के पुराने लोगों का मानना है कि अगर वे दिल्ली की राजनीति में उतर गए तो उनके लिए यह पद एक नई सीढ़ी का काम करेगा जो उनके राजनीतिक करियर को बुलंदियों पर पहुंचा सकती है।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हरीश चौधरी हमेशा से ही संगठन के नेता माने जाते रहे हैं। सूत्रों के अनुसार वे खुद भी मंत्री पद छोड़कर संगठन में सक्रिय भूमिका में फिर से आना चाहते हैं। उन्हें नेशनल कांग्रेस कमेटी में किसी राज्य के चुनावों को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इधर राजस्थान में युवा कांग्रेस रहे अशोक चांदना की परफोर्मेंस भी शानदार रही है। कहा जा रहा है कि अशोक चांदना को संगठन में युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ने की जिम्मेदारी के साथ संगठन में बड़ी भूमिका दी जा सकती है। इधर गहलोत कैबिनेट की इकलौती महिला मंत्री ममता भूपेश की सेवाएं भी संगठन के लिए सुरक्षित रखी जा सकती हैं। सरकार के भरोसे के मंत्रियों में शुमार प्रमोद जैन भाया की सूझबूझ और काबिलियत भी संगठन को और मजबूती प्रदान करने के काम आ सकती है। कांग्रेस के वफादारों और वरिष्ठ नेताओं में शुमार लालचंद कटारिया संगठन में लाए जा सकते हैं। फिलहाल उनके पास कृषि मंत्रालय है। लेकिन वे खुद भी संगठन में आने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं।
बहरहाल फॉर्मूला कांग्रेस जो ले आए सब मंजूर है, लेकिन राजस्थान की सियासत को क्या ये कभी मंजूर होगा कि प्रदेश में जादूगर कहलाए जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो अपनी सूझबूझ से हर परिस्थिति का मुकाबला कर उसे अपने पक्ष में कर ही लेते हैं को राजस्थान छोड़कर जाना होगा। शायद अभी भी कुछ समय बाकी है इसमें। फिर वक्त किसने देखा है।